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Pir Baba Budhan Ali Shah : एक दरगाह ऐसी जहां हवाई जहाज भी देते है सलामी

 

पीर फकीर ओलियाओं ने कुछ ऐसे बंदगी की कि दुनियां उनके चरणों में सजदा करने का विवश हो गई। आज जम्मू कश्मीर की विरासत में हम आपकों एक ऐसे ही स्थान पर लिए चलते है जहां पर इंसान तो इंसान हवाई जहाज को भी झुकना पड़ता है और जहाज का पायलट बिना सलामी दिए आगे नहीं बढ़ता है। यह स्थान है पीर बाबा बुडन शाह अली का जिनकी दरगाह जम्मू के रायपुर सतवारी इलाके में ठीक जम्मू एयरपोर्ट की दीवार के साथ स्थित है। इस दरगाह की मान्यता बताने से पहले आपकों बता दें कि 1643 ईसवी में पीर बाबा बुडन शाह अली अवतरित हुए थे वो मूलतः बगदाद के रहने वाले थे और और 13 वर्ष की आयु से ही उन्होंने बंदगी का रास्ता इख्तियार कर लिया। उनका नाम तब शम्शुदीन रहमतुल्ला था जो बाद में बाबा बुडन शाह अली के नाम से विख्यात हुए। 

कहते है कि बात उस समय की है जब जम्मू एयरपोर्ट बनने जा रहा था और यहां पर इंडियन एयरफोर्स ने भूमि की निशानदेही कर इस स्थान को जम्मू एयरपोर्ट के लिए चिंहित किया और इसकी तारबंधी कर दी। तारबंधी के दौरान पीर बाबा बुडन शाह अली की वो छोटी सी दरगाह भी एयरफोर्स ने अपने अधीन कर ली। ऐसे में दरगाह पर लोगों का आना जाना बंद हो गया। फिर जम्मू एयरपोर्ट से एयरफोर्स ने अपने चापर उड़ाने शुरू किए लेकिन जैसे ही चापर हवा में जाता तो उसके अंदर से धुआं उठना शुरू हो जाता।

 पायलट चापर को नीचे उतार लाता और जैसे ही पायलट चापर से बाहर आता उसे आग लग जाती थी। कहते है कि ऐसा एक बार नहीं सात बार हुआ जिस कारण से इस क्षेत्र का नाम सतवारी डाल दिया गया। लेकिन एयरफोर्स के अधिकारी कुछ समझ नहीं पा रहे थे। आखिर क्या हो रहा है। काफी समय तक उन जले हुए चापरों का मलबा एयरपोर्ट पर ही पड़ा रहा और तकनीकी एक्पर्टों ने मलबे की जांच कर बताया कि चापरों में कोई तकनीकी खराबी नहीं थी।

 ऐसे में परेशान एयरफोर्स अधिकारियों ने आसपास के वृद्ध लोगों को बुलाया और उनसे बातचीत की। तो उन्हें ज्ञात हुआ एयरपोर्ट की तारबंधी के समय पीर बाबा बुडन शाह अली की दरगाह को भी एयरफोर्स ने अपने अधीन ले लिया जिससे वहां पर पूजा अर्चना बंद हो गई। संभवतः उसी कारण से यह सब हो रहा है। इस पर बात तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी तक जा पहुंची तो उन्होंने निर्देश दिया कि तत्काल प्रभाव से उस दरगाह के स्थान को छोड़ उसे आम जनता के लिए खोल दिया जाए।


 कहते है कि एयरफोर्स ने ऐसा ही किया और उस दिन के बाद एयरफोर्स के अधिकारी भी इस दरगाह पर सजदा करने लगे और उसके बाद कभी एयरफोर्स का कोई नुकसान नहीं हुआ। आज भी जम्मू एयरपोर्ट से उड़ने वाली हर उड़ान, उड़ान भरते हुए और लैंड होते हुए पीर बाबा बुडन शाह अली को झुक कर सलाम करती है और पायलट सलामी देकर ही आगे बढ़ता है। जबकि प्रत्येक वीरवार को एयरफोर्स की तरफ से पीर बाबा बुडन शाह अली की दरगाह पर लंगर प्रशाद भी भिजवाया जाता है।


बाबा बुडन शाह अली ऐसे पीर हुए जिन्होंने तमाम उम्र दूध का ही सेवन किया इसके अलावा किसी दूसरी वस्तु का सेवन उन्होंने नहीं की। आज जम्मू के साथ साथ बाबा बुडन शाह अली जी की जियारत पंजाब के कीरतपुर और नंदपुर में भी है जहां उन्हें कीरतपुर साहेब व नंदपुर साबेह के रूप में वर्णित किया जाता है। जबकि कहा तो यह भी जाता है कि बाबा बुडन शाह अली जी की आयु 802 साल 13 दिन हुई है और उसमें से उन्होंने 775 साल बंदगी ही की है। कहते है कि बाबा बुडन शाह अली जिन बकरियों का दूध पीते थे। उनको चराने भी शेर जाते थे और उनकी रखवाली भी शेर ही करते थे। बाबा बुडन शाह अली व गुरु नानक देव जी में ऐसी घनिष्ठता थी कि कई सदियों बाद भी गुरू नानक देव जी उन्हें मिलने गए।


कहते है कि एक बार जब गुरु नानक देव जी पीर बाबा बुडन शाह अली जी को मिलने गए तो उस समय पीर बाबा जी का शेर बकरियों को चराने गया हुआ था लेकिन जैसे ही गुरू नानक देव और पीर बाबा बात कर रहे थे तो उसी दौरान शेर बकरियों को चराकर आ गया और उनने आते ही गुरू जी को नमस्कार किया और उनके पाऊँ पकड़ लिए।  तब पीर बाबा बुडन अली शाह जी ने शेर से कहा कि जाओ और बकरियों का दूध निकालकर लाओ और गुरू जी को पिला दो।


 शेर एक खाली बर्तन लेकर गया और उसमें बकरियों का दूध निकालकर ले आया। तब गुरू नानक देव जी ने बाबा बुडन शाह अली से कहा कि यह दूध मेरी मैं अभी नहीं पिउंगा मैं छठी पातशाही में आकर यह दूध पिऊंगा। तब बाबा बुडन जी ने कहा हो सकता है मेरी उम्र इतनी ना हो क्योंकि उस समय बाबा बुडन जी की आयु  काफी हो गई थी और आंखों के पलके भी झूल गई थी। इस पर गुरु नानक देव बोले आपकी उम्र बहुत है आप हमारी अमानत को अपने पास रखे और छठी पातशाही में आकर मैं आपसे यह दूध लूंगा। इस पर बाबा बुडन जी कहा कि गुरु जी उस समय मैं आपकों कैसे पहचानूगा। 


कोई निशानी तो बता दें। तब गुरु नानक देव ने कहा कि मैं आकर अपने दाहिने हाथ का अंगूठा हिलाऊंगा। गुरू नानक जी के कथन अनुसार जब छठी पातशाही का समय आया तो श्री गुरु हरगोविंद सिंह जी बाबा बुडन शाह अली से मिलने गए और अपने दाहिने हाथ का अंगूठा हिलाया। इस पर बाबा बुडन जी को गुरू नानक जी का कथन याद आया तो वो बोले आप गुरु नानक देव जी का रूप धारण करें। इस पर गुरु हरगोविंद सिंह जी ने गुरु नानक देव जी का रूप धारण किया। फिर बाबा बुडन जी ने वह दूध निकाल कर उन्हें दिया और गुरु नानकदेव जी के रूप में ही गुरु हरगोविंद सिंह ने उस दूध का सेवन किया और बाबा जी को दीर्घ आयु होने व लोगों के कष्ट दूर करने का वरदान दिया।

पीर बाबा बुडन शाह अली की कहानियों को कहने और सुनने बैठे तो सर्दियों तक वो समाप्त नहीं होंगी लेकिन जम्मू की ही एक सच्ची घटना का उल्लेख हम जरूर करेंगे। आज करीब 45 वर्ष पूर्व रिहाड़ी निवासी एक दम्पति पीर बाबा बुडन शाह अली की इस दरगाह पर आये और उनसे पुत्र प्राप्ति की कामना की। लेकिन जैसे ही वो दरगाह पर कामना कर रहे थे तो एक छोटी सी बच्ची ने आकर उनका दामन थापते हुए कहा कि चलों पिता जी घर चलते है। वो दम्पति उस बच्ची को नहीं जानते थे जबकि कुछ देर में वो बच्ची उनकी आंखों के सामने से ही गायब हो गई। लेकिन वहां पर मौजूदा इमाम साहेब ने उस दम्पति से कहा कि आपने पुत्र मांगा है पर पीरबाबा आपकों पुत्री दी है। अब कुछ माह बाद आपके घर पुत्री जन्म लेगी जो कि पीर फकीरों की सेवा करने वाली होगी। फिर उसी प्रकार उस दम्पति के घर बेटी हुई और वो बड़े होने के साथ साथ इस दरगाह पर हर वीरवार को पैदल चलकर आकर माथा टेकने लगी। जबकि आज भी वो बच्ची शादीशुदा है और आज भी वो पीर पैगम्बरों की सेवा करने का कोइ भी मौका छूटने नहीं देती है। 

लेखक अश्विनी गुप्ता जम्मू

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