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अघार जित्तो: बाबा जित्तो की त्याग और बलिदान की कहानी



अघार जित्तो वो स्थान है जो शायद कभी इतिहास में याद भी नहीं रखा जाता क्योंकि अगर इस गांव से एक ऐसे किसान ने जन्म न लिया होता जिसने पूरी दुनिया को न्याय के लिए खुद को बलिदान तक करने की प्रेरणा न दी होती है। यह स्थान उन न्याय के देवता जेतमल का है जो बाबा जित्तो के नाम से पूरी दुनिया में जाने जाते व पूजे जाते है। माता वैष्णो देवी के आधार शिविर कटड़ा से रियासी की तरफ जाने वाली सड़क पर करीब 7 किलोमीटर की दूरी पर अघार जित्तो नामक स्थान है जो कि ठीक सड़क के उपर स्थित है और यहां पर बाबा जित्तो की एक ऐसी प्रतिमा बनाई गई है जो कि ऐसा प्रतीत होता है कि मां वैष्णो देवी की गोद में बनाई गई हो। जबकि इसी के साथ वहां पर बाबा जित्तो व बुआ कौड़ी का मंदिर भी बनाया गया है। बाबा जित्तो का जीवन एक प्रेरणाप्रद दास्तान है, जिसके कई पहलु मानवीय जीवन की उस महानता को दर्शातें हैं कि इंसान भगवान की प्रार्थना से बहुत कुछ प्राप्त कर सकता है। अन्याय के सामने कभी किसी का सिर नहीं झुकना चाहिए। अन्याय करने वाले को बहुत बुरा फल मिलता है जबकि बुजुर्गों की सेवा करने वाले सदैव सुखी रहते है। कहते हैं कि कोई साढ़े सात सौ वर्ष पहले रियासी तहसील के गांव अघार में एक गरीब ब्रह्म्ण रूप चंद रहता था। उनकी पत्नी का नाम जोजला था। बाबा जित्तो के माता पिता को कोई संतान नहीं थी लेकिन मां जोजला भक्तिभाव में लीन रहने वाली स्त्री थी। कहते है कि एक बार ऐसा संयोग बना कि भगवान शंकर जोजला की भक्ति से प्रसंन हुए और उसे वर मांगने के लिए कहा तो मां जोजला ने एक पुत्र का वरदान मांगा। भगवान शिव ने उन्हें वरदान दे दिया। समय के साथ बाबा जित्तो बड़े होने लगे और प्रभु भक्ति में मग्न रहने लगे। वह होनहार बच्चा चंचल तो बचपन से ही था, पर साथ में धार्मिक कार्यों में भी रूचि लेने लगा था। गांव वाले उसे मुनि कहने लगे। लेकिन उनकी एक विधवा चाची जोंझा थी जो कि बाबा जेलमल को बड़ा बुरा भला कहती थी और उन्हें अच्छा नहीं समझती थी। अपनी विधवा चाची जोंझा के व्यवहार से आहत होकर वो एक दिन घर छोड़कर मां वैष्णा देवी के दरबार चले गए। अभी वो छोटे बालक ही थे और मां के दरबार में जाकर वो उनकी भक्ति में लीन हो गए। मां वैष्णो देवी उनकी कठिन भक्ति से प्रसन्न हुई और उन्हें दर्शन दिए व वर मांगने को कहा। लेकिन बाबा जित्तो ने कहा कि वो कोई वर नहीं मांगना चाहते बस इतना चाहते है कि जब भी उन पर कोई विपत्ति आये तो एक बार समरण करने पर मां आप मुझे दर्शन देना। मां ने उनकी इच्छा स्वीकार की और बाबा जित्तो वापिस घर आकर मां की भक्ति में लीन रहने लगे। समय के साथ जब बाबा जित्तो बड़े हुए तो उनका विवाह ब्राहम्ण कुल की मायावती से हुआ। लेकिन बाबा जित्तो ने अपनी मां भक्ति को नहीं छोड़ा। इस पर मां वैष्णो देवी ने उन्हें दर्शन किए और कहा कि वो उनसे बहुत प्रसंन्न है अब तो कोई वर मां लो। इस पर भी बाबा जित्तो ने भक्ति का ही वर मांगा। इस पर मां ने कहा कि मैं तेरे घर पुत्री के अंश में पैदा हूंगी लेकिन जब तेरी पूत्री पांच वर्ष की हो जाएगी तो तुझे इस देह का त्याग करना होगा। इसके उपरांत बाबा जित्तो के माता पिता का देहांत हुआ और समय का चक्र आगे बड़ा तो बाबा जित्तो की पत्नी को एक दिन प्रसव पीड़ा होने लगी। लेकिन बाबा जित्तो अकेले होने कारण पत्नी को छोड़ किसी को बुलाने न जा सकें। लेकिन इस बीच उनकी पत्नी ने एक पुत्री को जन्म दिया और प्रभु को प्यारी हो गई। इस पर बाबा जित्तो अपना आपा खोकर रोने लगे। लेकिन अपने दीक्षागुरू की बातों का समरण करते हुए उन्होंने कन्या को उठाया और उसके लालन पालन में जुट गए। उन्होंने इस कन्या नाम गौरी रखा जिसे बाद में लोग बुआ कोड़ी के नाम से जानने लगे। जब गौरी पांच वर्ष की हुई तो बीमार रहने लगी। स्थानीय वैद्य उसका उपचार करने में असफल हो गये। जिस पर जेतमल ने वातावरण बदलने के लिए गांव छोड़ने का फैसला किया। ऐसे में बाबा जित्तो उन्हें अघार गांव से अपने पालतू कुत्ते व बेटी गौरी को लेकर जम्मू के काना चक्क के पंजोड़ नामक गांव में आ गए। पंजोड़ में वो अपने एक दोस्त राहदू के यहां चले आए। आज इस गांव को झिड़ी के नाम से जाना जाता है और यहीं आगे शुरू होती है बाबा जित्तो के त्याग व बलिदान की कहानी। झिड़ी के साथ आज अघार जित्तो में भी बड़ी संख्या में श्रद्धालु बाबा जित्तो व बुआ कौड़ी के मंदिर में शीश झुकाने पहुंचते है। आज अघार जित्तो श्रद्धा व सौंदर्य का संगम बन चुका है।

लेखक अश्विनी गुप्ता जम्मू

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