हज़रत इब्राहीम (अलैहिस्सलाम) की कहानी और अल्लाह के प्रति उनका प्रेम और भक्ति
हज़रत इब्राहीम (अलैहिस्सलाम) को इस्लाम, यहूदी और ईसाई धर्मों में एक महान पैगंबर माना जाता है। उनका जीवन अल्लाह के प्रति गहरी भक्ति और समर्पण का प्रतीक है। कुरआन और हदीस में उनके जीवन के कई महत्वपूर्ण घटनाओं का उल्लेख है, जो इस बात का सबूत हैं कि उन्होंने हर परीक्षा में अल्लाह के प्रति वफादारी और प्रेम दिखाया।
प्रारंभिक जीवन
हज़रत इब्राहीम (अलैहिस्सलाम) का जन्म बाबुल (प्राचीन इराक) में हुआ था। उनके पिता आज़र (या तेरह) एक मूर्तिपूजक थे। इब्राहीम (अलैहिस्सलाम) ने बहुत कम उम्र में ही यह समझ लिया था कि मूर्तियाँ सच्चे ईश्वर नहीं हो सकतीं। कुरआन में इसका जिक्र आता है कि उन्होंने अपने पिता और समुदाय को मूर्तिपूजा से रोकने की कोशिश की, लेकिन लोगों ने उनकी बातों को नहीं माना।
स्रोत: अल-क़ुरआन 6:74, 21:51-58
मूर्तिपूजा का खंडन
इब्राहीम (अलैहिस्सलाम) की कहानी का सबसे प्रसिद्ध हिस्सा उनकी मूर्तिपूजा के खिलाफ विद्रोह है। एक दिन, जब उनके शहर के लोग एक त्योहार में भाग लेने गए थे, इब्राहीम (अलैहिस्सलाम) ने मंदिर में जाकर सभी मूर्तियों को तोड़ दिया, सिवाय सबसे बड़ी मूर्ति के। जब लोग लौटे और उन्होंने मूर्तियों को टूटा हुआ पाया, तो इब्राहीम (अलैहिस्सलाम) ने उन्हें बताया कि शायद बड़ी मूर्ति ने बाकी मूर्तियों को तोड़ा है, ताकि लोग समझें कि मूर्तियाँ अपनी रक्षा भी नहीं कर सकतीं, तो वे कैसे भगवान हो सकती हैं। इस घटना के बाद, लोगों ने उन्हें आग में जलाने की सजा दी, लेकिन अल्लाह के हुक्म से आग ठंडी हो गई और इब्राहीम (अलैहिस्सलाम) सुरक्षित रहे।
स्रोत: अल-क़ुरआन 21:59-70
अल्लाह के आदेश पर हज़रत इब्राहीम की कुर्बानी
इब्राहीम (अलैहिस्सलाम) की सबसे कठिन परीक्षा तब आई जब अल्लाह ने उन्हें अपने बेटे इस्माइल (अलैहिस्सलाम) की कुर्बानी देने का आदेश दिया। कुरआन के अनुसार, इब्राहीम (अलैहिस्सलाम) ने बिना किसी सवाल के अल्लाह का आदेश मान लिया और अपने बेटे को कुर्बान करने की तैयारी की। लेकिन ऐन वक्त पर अल्लाह ने उनकी भक्ति देखकर इस्माइल (अलैहिस्सलाम) की जगह एक मेढ़े को कुर्बान करने का आदेश दिया। यह घटना आज ईद-उल-अज़हा के त्योहार के रूप में मनाई जाती है।
स्रोत: अल-क़ुरआन 37:102-107
काबा का निर्माण
इब्राहीम (अलैहिस्सलाम) और उनके बेटे इस्माइल (अलैहिस्सलाम) ने मक्का में काबा का निर्माण किया, जो मुसलमानों के लिए सबसे पवित्र स्थान है। इस्लामी परंपरा के अनुसार, उन्होंने अल्लाह की इबादत के लिए इस घर की नींव रखी, और यह स्थान आज हज यात्रा का केंद्र है।
स्रोत: अल-क़ुरआन 2:127
अल्लाह के प्रति प्रेम और समर्पण
इब्राहीम (अलैहिस्सलाम) की पूरी ज़िन्दगी अल्लाह के प्रति गहरी आस्था और समर्पण से भरी हुई थी। उन्होंने हर परीक्षा में अल्लाह की इच्छा को प्राथमिकता दी और यह साबित किया कि जब इंसान सच्चे दिल से अल्लाह पर भरोसा करता है, तो अल्लाह उसकी मदद करता है। उनके जीवन को "खलीलुल्लाह" (अल्लाह का दोस्त) की उपाधि दी गई, जो इस्लाम में उनकी भक्ति और प्रेम का प्रतीक है।
स्रोत: हदीस अल-बुखारी, किताब 60, हदीस 335
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