जम्मू कश्मीर में एक स्थान ऐसा भी है यहां पर दोनों देश के सैन्य जवान कभी भी एक दूसरे पर गोली नहीं चलाते है जबकि दोनों देशों के जवान इस स्थान का पूरा सम्मान करते है। यह स्थान है भारत पाक सीमा पर रामगढ़ सैक्टर के चमलियाल में। जबकि यू कहें तो इसी स्थान के कारण ही इस क्षेत्र का नाम चमलियाल भी पड़ा है। यह स्थान है बाबा दलीप सिंह मन्हास का जो कि एक करामाती बाबा थे और उनके हाथ से दी गई मिट्टी भी लोगांे को नया जीवन प्रदान करती थी। बात उस समय की है जब भारत व पाक दो देश न होकर एक ही देश थे और रामगढ़ सैक्टर के इस स्थान पर दो देशों को बांटने वाली कटीली तारें नहीं थी।
हालांकि जब बाबा दलीप सिंह इस स्थान पर रहते थे तो तब इस स्थान का नाम क्या था यह किसी को भी ज्ञात नहीं है और न ही इसका इतिहास में भी कोई उल्लेख मिलता है। लेकिन बाबा दिलीप सिंह मन्हास की ख्याति पूरे देश में थी। वह अपने चमत्कारों के चलते हर समुदाय के लिए पुजनीय हो चुके थे। कहते है कि बाबा दलीप सिंह मन्हास हर समय भगवान की इबादत में लगे रहते थे लेकिन एक बार कुछ ऐसा हुआ कि इस क्षेत्र आसपास कई किलोमीटर तक लोगों को कई प्रकार के चरम रोग होने लगे। लोग बाबा के पास आने लगे और बाबा उन्हें इस स्थान की मिटटी व पानी का लेप बनाकर देते जिसे लगाने से लोगों के चरम रोग दूर होने लगे। तभी गांव सैदावली जो कि मौजूदा समय में सीमा के उस पार पाकिस्तान में स्थित है के हकीमों की दुकानदारी बंद होने लगी। लोग उनके पास न जाकर बाबा के पास आकर अपनी बीमारियों को उपचार करवाने लगे जो उन हकीमों से सहन नहीं हो रहा था तो उन्होंने बाबा की हत्या की योजना बनाई।
एक दिन उन्होंने लोगों के बीमार होने का बहाना बनाकर बाबा को गांव सैदावली में बुलाया। बाबा अपने घोड़े को पर सवार होकर गांव सैदावली में पहुंचे तो इन लोगों ने धोखे से घोड़े पर सवार बाबा का सिर धड़ से अलग कर दिया। बाबा का सिर तो वहीं गांव सैदावली में गिर गया पर घोड़े पर सवार बाबा का धड़ उसी गांव में आ गया यहां पर बाबा भगवान की इबादत में लीन रहते थे। गांव पहुंचते ही उनका शरीर घोड़े से गिर गया। इसके बाद लोगों ने इस स्थान पर बाबा की दरगाह बना दी जबकि दूसरी तरफ गांव सैदावली में बाबा के भक्तों ने उनके सिर को सैदावली में दफन करके वहां पर भी दरगाह बना दी। इन दोनों दरगाहों में अब मात्र आधा किलोमीटर का अंतर है जबकि दोनों दरगाहें जीरों लाइन के बिलकुल पास है।
कहते है कि बाबा की हत्या के बाद गांव सैदावल में चंबल रोग फैल गया। लोग त्राहि त्राहि कर उठे। कोई उनका उपचार नहीं कर पा रहा था और लोग इतनी तकलीफ में थे कि खुद को मारने तक पर आमादा हो चुके थे जबकि लोग जान चुके थे यह बाबा का प्रकोप है जो चंबल बनकर फूट रहा है लोगों ने बाबा से माफी मांगी पर उन्हें शांति न मिली। तभी सैदावली में स्थित बाबा के एक भक्त को रात में बाबा सपने में आए। बाबा ने उसे कहा कि जिस स्थान पर उनका शरीर दफन किया गया है उस स्थान की मिट्टी व वहां पर स्थित कुएं का पानी मिलाकर लेप बनाकर लगाओ तो लोग इस बीमारी से मुक्त हो जाएंगे। भक्त ने बाबा के सपने वाली बात सभी को बताई तो लोग उसी समय बाबा दरगाह पर पहुंच गए और उसके पास से मिट्टी व कुंए का पानी लेकर लेप बनाकर लगाकर वहां नहाने लगे तो लोगों का रोग कम होता चला गया। इसके बाद लोगों में इस स्थान को लेकर आस्था और बढ़ गई और लोगों ने इस स्थान का नाम चमलियाल रख दिया। आज इस देवस्थान की मिट्टी को शक्कर और पानी को शरबत कहा जाता है। इसके बाद लोग वर्ष में एक बार इस दरगाह पर मेले का आयोजन करने लगे और बाबा से अपने गुनाहों की माफी मांगने लगे। भारत व पाक के अलग होने के साथ ही दोनों दरगाहों के बीच जीरों लाइन बन गई जबकि एक दरगाह गांव सैदावली में रह गई और दूसरी चमलियाल में आ गई।
यह दरगाह जम्मू से 50 किलोमीटर दूर जिला सांबा में अंतरराष्ट्रीय सीमा पर स्थित है। करीब 200 साल पुरानी बाबा दलीप सिंह मन्हास की इस दरगाह से लोग पहले की ही तरह, आज भी शक्कर कही जाने वाली मिट्टी और शरबत कहे जाने वाले पानी को लेने के लिए पहुंचते है। लोगों का मानना है कि इसे लगाने से सारे चर्मरोग दूर हो जाते हैं। मात्र भारत के ही नहीं पाक के लोग भी वर्ष भर इस मेले का इंतजार करते रहते है ताकि मेले के दिन वो इस स्थान की शक्कर व शरबत को ले जाकर अपने लोगों के चरम रोगों को दूर कर सकें। वर्षों तक पाक रेंजर्स दरगाह पर चादर चढ़ाकर जहां से शक्क्र व शरबत लेकर जाते रहे। लेकिन वर्षों से चली आ रही इस आस्था की मजार पर पाक ने फिर से गददारी का खंजर घोप दिया। आजादी के बाद से इस स्थान पर हुए संघर्ष विराम को वर्ष 2018 में पाक रेजरों ने तोड़ा और इस दरगार के साथ बनी बीएसएफ की पोस्ट पर फायरिंग कर दी। जिसमें बीएसएफ का एक जवान शहीद हुआ और कुछ घायल भी हुए। वर्ष 2018 में सीमा पर बिगड़े हालातों को देखते हुए बीएसएफ ने मेले का आयोजन रद्द कर दिया गया था। आजादी के बाद यह पहला मौका था जब दरगाह पर माथा टेकने के लिए न तो इस ओर और न ही उस ओर के किसी श्रद्धालु को दरगाह पर जाने की इजाजत दी गई। वर्ष 2019 में स्थिति में सुधार था। बीएसएफ ने भारत की आम जनता को तो दरगाह पर आने की अनुमति दी परंतु पाकिस्तान रेंजरों द्वारा चादर चढ़ाने की पेशकश न किए जाने के कारण उन्हें मेले में आमंत्रित नहीं किया गया।जबकि बाबा की दरगाह से शक्कर और शरबत पाकिस्तान श्रद्धालुओं के लिए भी नहीं भेजे गए। मौजूदा समय में प्रशासन के साथ मेला प्रबंधन कमेटी इस स्थान का रखरखाव करती है जबकि मौजूदा समय में श्रद्धालुओं के लिए कई प्रकार की सुविधाओं को यहां बढ़ाया गया है। कई व्यु पुवाइंट बनाये गए है जबकि अब इसे पयर्टन की दृष्टि से भी विकसित किया जा रहा है। आज भी लोग इस स्थान पर आकर शक्कर व शरबत का लेप लगाकर चरम रोगों से मुक्ति पा रहे है और लोगों की इस स्थान में अटूट आस्था है।
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